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मकई का दाना

आवाज़-ए-हिन्द
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आदरणीय मित्रो यह शब्द कोई अनजान शब्द नहीं यह वही मकई है जिसके बारे में कहावत प्रसिद्ध है “सरसों कि साग मक्के की रोटी” आज मैं मकई के जन्मदाता किसान के विषय में कुछ बात करना चाहता हूँ। जिस प्रकार आज मकई के दो प्रकार के बीज बाजार में उपलब्ध हैं एक देशी तो दुसरा…………। ठीक उसी प्रकार आज हमारे देश में दो प्रकार के किसान हैं एक देशी जिसकी हालत दिन_प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है वहीँ, दुसरे दिखावे के किसान जिनका हाल में दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की हो रहा है, तो क्या दिखावे को ही सच मान लिया जाए?
मकई का दाना और दिखावे का किसान
दिखावे के पास रखा मकई का दाना बडे सलीके से सम्भाल कर रखा हुआ देखने में बेहद आकर्षक लगता है। यहां मकई के दाने के लिए रख रखाव की पुरी व्यवस्था है लेकिन उसका अन्त क्या होगा या तो वह रखे रखे सड़ जाएगा या भोजन के रुप में किसान का खुराक बन जाएगा। परिणाम शून्य।
मकई का दाना और देशी किसान
देशी किसान मकई के दाने को जमीन जोतकर मिट्टी में दबा देगा जहाँ दाने को शायद शुरुआत में बेहद तकलीफ होगी क्योंकि एक तो वह मिट्टी से दबा है दुसरा धूप की गर्मी या यूँ कहे वातावरण के हर परिस्थिति को भोगना उसका नसीब है, अन्त में बेहतर कल के लिए वह अपना अस्तित्व त्याग देता है। परिणामस्वरूप वह एक सुन्दर पौधे को जन्म देता है,अबोध पौधे को देखकर किसान उसकी देखभाल बहुत ही प्यार से करने लगता है क्योंकि उसमें उसका सुनहरा भविष्य दिखने लगता है एक तो पौधे की हरियाली धरती माँ का श्रंगार कर सुन्दर बनाने में योगदान देती है तो दुसरी ओर उसके फल उस जैसे सैंकड़ो स्वरुप को जन्म देंगे। जिससे किसान का पेट भी भरेगा और उसका वंश भी आगे बढेगा।
इस देश में भी दो प्रकार के किसान रुपी नेता हैं जो मकई रुपी जनता को अपने अपने अन्दाज में अपनी खासियत बता रहे हैं । एक के पास है मायावी शक्ति जहाँ सब कुछ है लेकिन अन्त शून्य।
और दुसरे के पास है सच जो जरा कड़वी और तकलीफ दायक लेकिन अन्त सुनहरा।
अब आप से विनम्र निवेदन है आप बताए आपको कैसा नेता चाहिए?

दिल से
पर्वत में शिवालय तो नदी में देवी दिखता है
यह वह देश है जिस देश में मां की छवि दिखता है
ये माना सब कुछ आज ठीक नही “राशिद”
मुझे तो अन्धेरे के बाद का सुनहरा रवि दिखता है

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