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आतंकवाद और इस्लाम

आवाज़-ए-हिन्द
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आदरणीय मित्रो मुझे अच्छे से मालूम है कि मैं जिस बात पर चर्चा करने जा रहा हूँ वह कितना संवेदनशील है। लेकिन गलतफहमी के बजाय कड़वी सच्चाई कहीं ज्यादा बेहतर होता है। आतंकवाद का चेहरा आज जितना भयावह आज है उतना ही भयावह यह पहले भी रहा है। यह इस्लाम का दुर्भाग्य है कि जो आतंकवाद पैदा तो हुआ था इस्लाम के खात्में के लिए वही आतंकवाद बडी चालाकी से अपने छद्म इस्लामी छवि के सहारे गलतफहमी पैदा कर इस्लाम धर्म के खिलाफ नफरत फैला रहा है। क्योंकि इस्लाम को मानने वाले सच्चे मुसलमान इबादत के सिवा और किसी बात पर ध्यान देना ही नहीं चाहते और इस्लाम का छद्मवेश लिए आतंकवाद मानवता को शिकार बनाता जा रहा है।
कहते हैं गुनाह करना तो गुनाह है लेकिन गुनाह होता देखना भी गुनाह से कम नहीं सच्चे मुसलमानों को चाहिए के वह अब आतंकवाद का खुलकर विरोध करें और कहे इस्लाम का छद्मवेश धारण किए जो आतंकवादी है वह मुसलमान नहीं।
तथ्य
अभी हाल ही में मुहर्रम का महीना गुजरा है यह महीना मुसलमानों के लिए नया साल लेकर आता है और एक ऐसा सबक जो इस्लाम और आतंकवाद का फर्क़ समझा देता है एक हदीस के मुताबिक़ यज़ीद (जो इंसान की शक्ल में बुराई का जीता जागता पुतला था) जो अपने को इस्लाम का मसीहा और मुसलमानों का रहबर समझता था। लेकिन जैसा की पुरी दुनिया को पता है के हजरत मुहम्मद सल्ल0 अव्वल व आखिरी पैगम्बर है और उस वक्त उनके नवासे हजरत इमाम हुसैन हयात-ए-जिंदगी में थे ऐसे में भले ही यज़ीद अपनी हैवानियत के दम पर लोगों को अपना मुरीद बना लेता था मगर यह बात भी आम थी के हजरत मुहम्मद सल्ल0 के नवासे ने आखिर क्यों नहीं कहा के यज़ीद इस्लाम का मसीहा है। (और शायद यही कुदरत का निज़ाम है कि कुछ घटना इसलिए होता है ताकि आने वाले समय के लिए सबक बने) और यज़ीद भी इस तरह कि बातों से परेशान था। उसने फैसला किया की क्यों न इमाम हुसैन को ही मुरीद कर लिया जाए अपनी इसी ख्याल से इमाम हुसैन के यहां दावत भेजा के अगर आप हमसे मुरीद हो जाते हैं तो हम आपके लिए हर तरह के सुखसुविधा का इन्तज़ाम कर देंगे लेकिन इनकार करने पर जंग के लिए तैयार रहें। इमाम हुसैन ने जंग को कबूल कर लिया यह जानते हुए भी के यज़ीद की सैन्य ताक़त से लडने के लिए उनके पास बस चन्द लोगों कि फौज है। क्योंकि उन्हें यह बात बिल्कुल मन्जूर नहीं था के इस्लाम का नाम लेकर अधर्मी यज़ीद जैसे लोग इस्लाम धर्म को बदनाम करे।
कितना क्रूर था यज़ीद
जंग के दौरान जब 6माह का अली असगर भुख प्यास से तड़प रहा था तब इमाम हुसैन यज़ीद के पास जाकर कहे ऐ यज़ीद दुश्मनी हमसे है इस मासूम से नहीं इस के लिए पानी दे दो प्यास से यह तड़प रहा है जानते हैं उस यज़ीद ने हजरत मुहम्मद सल्ल0 के मासूम वंशज के साथ क्या किया? उसने ऐसी तीर चलाई जो मासूम अलीअसगर के गले को चीरता पार कर गया। तो क्या यज़ीद मुसलमान था ? नहीं, नाम मुसलमान सा हो जाने से कोई मुसलमान नहीं हो सकता। अगर यज़ीद इस्लाम को मानता तो वह कभी भी हजरत मुहम्म्द सल्ल0 के वंशज के गले पे पानी के बदले तीर नहीं चलाता।
आज जो आतंकवाद है ऐसे ही छद्मवेश में यज़ीद के वंशज हैं जो मानवता को शिकार बना रहें हैं।

दिल से
दौलत से दुनिया मिल सकती हैं मुक्ति नहीं मिलती
पानी से प्यास बुझ सकती हैं तृप्ति नहीं मिलती
एक बात गांठ बांध करके रख लो “राशिद”
मानवता के सौदागरों को कभी कीर्ति नहीं मिलती

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