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एक क्रिकेट स्टार की खामोश विदाई

आवाज़-ए-हिन्द
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Rahul-dravid

क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसके विषय में कहा जाता है कि कोई भी स्थिति निश्चित नहीं,इस खेल में कभी भी कुछ भी हो सकता है। और शायद यही बात इस खेल के खिलाड़ी पर भी लागू होता है। क्रिकेट के “द वाल” कहे जाने वाले राहुल द्रविड क्रिकेट जगत को बड़ी ही सादगी से अलविदा कह कर चले गए वो भी एक प्रेस कांफ्रेंस में अपने छोटे से वक्तव्य के साथ जिसका आयोजन बीसीसीआई नें किया था। वहीं एक और भव्य आयोजन हुआ था जो क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन के महाशतक के लिए हुआ था और जैसा की सचिन नें खुद बयान दिया है कि वे अभी क्रिकेट खेलते रहेंगे यानी उनके लिए अभी और मौका आने वाला है जिसके लिए जश्न मनाया जाएगा लेकिन राहुल द्रविड़ की विदाई उनके अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर का अंतिम आयोजन था वह भी बेरंग। उनके विदाई समारोह के अवसर पर बीसीसीआई द्वार किया गया रस्म अदायगी का आयोजन मन को कचोट गया।
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टीवी के रियलिटी शो में अक्सर एक बात कहा जाता है आप में एक्सफेक्टर की कमी है शायद राहुल द्रविड़ में भी एक्सफेक्टर की कमी थी तभी तो क्रिकेट के “द वाल” को वह सम्मान नही मिला जो उनको मिलना चाहिए था। अपने क्रिकेट कैरियर के उतार-चढाव में कभी भी उन्होने अपने आलोचकों को मुखर हो कर जवाब नहीं दिया हां अपनी काबलियत और बेहतरीन क्रिकेट से जवाब जरुर देते रहे और यही क्रिकेट जैसे जेंटल खेल के जेंटल मैन का अंदाज़ भी रहा। उनहोंने अपने क्रिकेट कैरियर में बेहतरीन क्रिकेट का प्रदर्शन किया। राहुल द्रविड़ द्वारा टेस्ट मैच में बनाया गए 36 शतक में से 32 शतक ऐसे थे, जो बेहद महत्वपूर्ण साबित हुए क्योंकि उन शतकों कि बदौलत भारतीय क्रिकेट टीम ने या तो मैच जीता या फिर मैच बचाने में काम आया बावज़ूद इसके उन्हें कभी विनर खिलाड़ी के रुप में देखा नहीं गया या यूँ कहें टेस्ट क्रिकेट में उनको वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। तो क्या स्टार बनने के लिए एक्स फेक्टर का होना बेहद जरुरी है काबलियत का कोई मोल नहीं होता। शायद दुनिया कि यही रीत है और इन्सानी फितरत भी यही है। इसको ऐसे समझने की कोशिश कीजिए जब कोई खूबसूरत मकान को देखता है तो उस मकान के रंग रोगन और चमक दमक की तारीफ़ तो करता है लेकिन उस मकान की नींव की तारीफ बहुत कम लोग करते हैं। कारण नींव का नजर नहीं आना, जबकि हकीक़त यह है की उस मकान का वजूद ही नींव कि बदौलत है। रंग रोगन और चमक दमक की तारीफ करने वाले लोग की भीड़ हो सकती है लेकिन नींव की बात वही करेगा जिसमें नींव कि अहमियत समझने की सलाहियत होगी। ऐसे लोग कम ही होते हैं। राहुल द्रविड़ भी क्रिकेट के महल की नींव की तरह है जिन्होनें बड़े धैर्यपूर्वक महल को सम्भालने में अपना अमूल्य योगदान दिया। राहुल द्रविड़ जैसे रियल हीरो इस देश में बहुत कम ही हैं जो अपना काम बेहद शालीनतापूर्वक कर के देश के युवाओं को मौका देने जैसा नायाब सोंच के साथ साहसपूर्ण फैसला लेते हुए खामोशी से अलविदा कह देते हैं। भले ही हीरो बनने वाले एक्स फैक्टर के दम पर अधिकांश लोगो को आकर्षित करने में कामयाब रहें। लेकिन मिस्टर भरोसेमंद के साहस, योगदान और खामोशी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है।
सबसे अहम सवाल क्या राहुल द्रविड़ कि विदाई एडम गिलक्रिस्ट और मुरलीधरन सा विदाई नहीं होना चाहिए था। क्या राहुल द्रविड़ अर्जुन राणातुंगा जैसे भरे स्टेडियम में भावभीनी विदाई के हकदार भी नहीं थे।

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